राजनीतिक दलों,मीडिया,चुनाव आयोग,व्यवसाय जगत व जनता का लम्बा इंतज़ार बड़ी जल्दी ख़त्म हो गया और पन्द्रहवीं लोकसभा का नया स्वरुप सबके सामने आ गया। कितना नीरस रहा यह चुनाव परिणाम ! न कहीं कोई परिचर्चा,न कोई उलझन या दबाव और न ही किसी के विकल्प को 'खुला' रहने का मौका ! सब कुछ इतनी जल्दी हुआ कि कई लोग तो 'बेरोजगार' हो गए !
इस चुनाव में यूपीए का सत्ता में आना तक़रीबन सब सर्वेक्षणों में तय माना जा रहा था पर कांग्रेस इतनी धमक के साथ वापसी करेगी ऐसा तो उसके रणनीतिकारों ने भी नहीं सोचा था। जनता ने इस बार एक तीर से कई शिकार करके कांग्रेस का काम आसान कर दिया । बहरहाल , जो जनादेश आया है उसके कई निहितार्थ हैं।
सबसे ज़्यादा घाटे में रहे वाम दल । उनको 'सरपंच' बनने का भी मौका नहीं मिला क्योंकि उनके ही 'पंच' गायब हो गए । चुनाव बाद करात साहब बंगाल का खूँटा दिल्ली में आकर गाड़ना चाहते थे कि तम्बू लगाकर 'मोर्चा-मोर्चा' और 'पी.एम.-पी.एम.' खेला जाए पर बंगाल की जनता ने उनका तम्बू बंगाल से ही उखाड़ फेंका । महीनों से तैयारी में लगे कई तरह के धंधे-बाज , माफिया-टाईप मसीहा , सत्ता के सौदागर व किंग-मेकर ऐसे ठिकाने लगे कि उनकी 'मार्केट-वैल्यू' ही ख़त्म हो गयी। जनता के एक ही वार में पवार,लालू,पासवान, माया व जया सभी चित्त हो गए !
सबसे बड़ा तुषारापात तो भाजपा के 'पी एम इन वेटिंग' आडवाणी जी के सपनों पर हुआ है। सभी तरफ़ से आवाजें आ रही थीं कि उनकी 'कुंडली' में शिखर-पद का योग नहीं है पर वह मानने को बिल्कुल तैयार नहीं थे। 'मज़बूत नेता और निर्णायक सरकार' का नारा ज़रूर जनता को अच्छा लगा और उसने उनके बताये हुए कमज़ोर प्रधानमंत्री को और मज़बूत करके निर्णायक सरकार बनवा दी !
अब जबकि सारा खेल-तमाशा ख़त्म हो चुका है,संघ और भाजपा के हिंदुत्व को जनता ने कूडेदान के हवाले कर दिया है। लगता है कि भाजपा में समझ-बूझ वालों की कमी हो गई है तभी तो पार्टी ने वरुण और मोदी के ज़हरीले भाषणों व शिव-सेना और मनसे के उपद्रवों को जानबूझ कर अनसुना व अनदेखा किया। इस चुनाव ने एक काम और किया है । जनता ने जहाँ लालकृष्ण आडवाणी की लपलपाती महत्वाकांक्षा को शान्त किया है वहीं भाजपा के ही भाई-लोगों ने लगे हाथों नरेन्द्र भाई को भी ठिकाने लगा दिया है। अब भविष्य में शायद ही संभावित प्रधानमंत्री पद के लिए कोई उनके नाम का प्रस्ताव करे !
इस जनादेश का निहितार्थ कांग्रेस के लिए भी है कि उसे अब बिना किसी बहाने-बाज़ी और हीला-हवाली के ऐसे काम करने चाहिए जो आम आदमी के हित में हों तथा उन सपनों को भी सच करे जो उसने ग़रीबों और युवाओं को दिखाए हैं !
गुरुवार, 21 मई 2009
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1 टिप्पणी:
achchha likha hai...specially the part.."kamjor neta ko majboot karke nirnayak sarkar banawa di"...
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