आज की राजनीति में अपनी 'छवि' को चमकाने का सबसे सरल ,सस्ता तरीका है कि पहले से स्थापित किसी महान पुरूष को जी भर के गरिया दो या किसी बने-बनाए नियम के प्रतिकूल बयानबाजी कर दो । मायावती जैसे लोग इसी श्रेणी में आते हैं । इन्होंने अपनी राजनीतिक पारी ही गाँधीजी को भद्दी गाली देकर शुरू की थी और अब जब हालिया चुनावों के बाद सत्ता में पकड़ कमज़ोर होती दिखी तो वही 'फार्मूला' अपनाया है।
मायावती जी ने उवाचा है कि गाँधीजी 'नौटंकी-बाज़ 'थे । अव्वल तो इस तरह की टिप्पणी से गाँधीजी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा पर जब यह बात कहने वाला संवैधानिक पद पर बैठा हुआ एक व्यक्ति कहता है तो चिंता होती है कि हमारा संविधान इतना लुंज-पुंज क्यों है कि समग्र रूप से मान्य ऐसे व्यक्तित्व पर कोई अपने निज़ी लाभ के लिए करोड़ों लोगों की भावना को ठेस पहुँचा कर भी ठठा कर हँसता है और वह चुपचाप देखता-सुनता रहता है?
दर-असल जिन लोगों के पास न तो अपनी कोई नीतियाँ हैं न उनमें आत्म-विश्वास है तो वह इसी तरह के 'शार्ट -कट' का रास्ता अपनाते हैं पर जनता भी अब ऐसे लोगों को 'शार्ट' करना सीख गई है। मायावती कितनी बड़ी 'नौटंकी-बाज़' हैं यह अब किसी से छुपा नही रहा।वह पूरी तरह से गुण्डा ,माफिया ,हफ्ता-वसूली करने वाले को प्रश्रय देने वाली ज़मात की नेता बनकर उभरी हैं। महात्मा गाँधी की योग्यता व उनके लिए वकालत करने की कोई ज़रूरत नही है । उनके योगदान का मूल्यांकन देश ही नहीं सम्पूर्ण विश्व कर रहा है,ऐसे में ऐसी ओछी टिप्पणियों से उनके क़द पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
यह बात और है कि मायावती का 'गाँधी' उपनाम ने जीना हराम कर रखा है और ऐसे में वे हर गाँधी पर अपना नज़ला गिराना चाहती हैं ,पर इससे क्या उनके पराभव और पतन की रफ़्तार कम हो जायेगी?
रविवार, 21 जून 2009
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