गुरुवार, 11 दिसंबर 2008

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पाँच विधानसभा चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस और भाजपा दोनों को चौंकाया है। दूसरे राज्यों के नतीजों ने उतना अप्रत्याशित परिणाम नहीं दिया जितना कि दिल्ली ने। भाजपा को तो मानो साँप ही सूंघ गया हो,उसकी सारी हसरतें और कसरतें एकदम से हवा के गुब्बारे -सी फुस्स हो गयीं । कहाँ तो हमारे आडवाणीजी प्रधानमंत्री की कुर्सी में तेल-मालिश लगाकर उसमें बैठने की तैयारी में थे और कहाँ इस मल्होत्रे ने उनकी सारी उम्मीदों पर पलीता लगा दिया। ख़ुद तो वह 'सीएम इन वेटिंग' रह गया और अब इस बात का डर उनके दिल में भी बैठा गया कि वह भी 'पीएम इन वेटिंग' बनकर न रह जाएँ !


वैसे भाजपा ने दिल्ली में नारा दिया था कि 'हारेगा आतंक' और यह बात मतदाताओं ने उसे अच्छी तरह से बता दी है। मुंबई की घटना के दिन पहले भाजपा ने सरकार के हर कदम का साथ देने का एलान किया ,आडवाणीजी मनमोहन सिंह के साथ वहां जाने को तैयार होते हैं लेकिन शाम होते - होते राजनीति हावी हो गई और भाजपा यू-टर्न लेकर वोटों की फसल काटने को बेताब हो गई। दूसरे दिन जब दिल्ली में मतदान होना था ,तब उनका लगभग हर अखबार में एक स्याह विज्ञापन आता है, अटल की आतंक के प्रति 'चिंता' इस संदेश के साथ छपती है कि लोग भाजपा के राज में ही सुरक्षित रहेंगे ,पर मुआ वोटर को कौन समझाए उसने तो अपनी नम आँखों से मुम्बईवासियों को श्रद्धांजलि दी और भाजपा के द्वारा डराए और फैलाये 'आतंक' को हरा दिया।
क्या आडवाणीजी अपने संभावित मंत्रिमंडल की लिस्ट को परे रखकर एक बार यथार्थ की दहलीज़ पर पैर रखेंगे ? अब उन्हें 'पीएम इन वेटिंग ' शब्द से क्या चिढ़ नहीं महसूस होगी ? बहरहाल जनता ने जो परिपक्वता दिखाई है उसके लिए उसे सलाम!
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