मंगलवार, 27 जनवरी 2009

रेल कोच फैक्ट्री -एक सपना जो पूरा हुआ

Posted by Picasa आखिरकार लंबे इंतज़ार के बाद लालगंज,रायबरेली के लोगों की मनमाँगी मुराद पूरी हो रही है।संपूर्ण प्रदेश के लिए गौरव का विषय होने के बावजूद केवल राजनैतिक कारणों से मायावती ने लालगंज में शुरू होने जा रही रेल कोच फैक्ट्री का विरोध किया था पर उनकी एक चली और आज इस क्षेत्र में लाखों लोगों का सपना साकार होने जा रहा है। रायबरेली की सांसद और देश को आदर्श नेतृत्व प्रदान करने वाली श्रीमती सोनिया गाँधी ने बहुत साल पहले श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा शुरू किए गए विकास को गति देने की कोशिश की है . इंदिरा जी के जाने के बाद से रायबरेली राजनैतिक और सामाजिक रूप से अप्रासंगिक -सा हो गया था पर जब से सोनिया जी आयीं हैं, ज़िले की हर क्षेत्र में अपनी पहचान बनी है। लालगंज के आस-पास का इलाका काफ़ी पिछड़ा हुआ है पर स्थानीय विधायक ,लालगंज नगर-पालिका चेयरमैन श्री अनूप बाजपेई और विशेषकर श्री के.एल .शर्माजी के व्यक्तिगत प्रयासों से विकास की गंगा फिर से बहने लगी है।
अभी भी बहुत से काम करने हैं जिस से इस क्षेत्र की पुरानी गरिमा को वापस लाया जा सकता है। किसी भी जगह विकास का पैमाना वहां की सड़कें होती हैं और इस दिशा में काम हो भी रहा है,इसके साथ ही परिवहन की हालत बहुत दयनीय है। आम आदमी व्यक्तिगत सवारी या टेम्पो के सहारे ही रहते हैं पर इस कारखाने के आने के बाद से रोज़गार और विकास को नयी गति ज़रूर मिलेगी। इसके लिए सोनिया जी को हार्दिक धन्यवाद !

शनिवार, 3 जनवरी 2009

माया मिली न राम !

बीता साल पूरी दुनिया के लिए भारी रहा ,सब ज़गह मंदी की मार पड़ी और कई कंपनियों का बोरिया-बिस्तर तक बंधगया पर भारत की एक राष्टीय पार्टी भाजपा के लिए तो 2008 जाते-जाते ऐसे ज़ख्म दे गया है जिन्हें वह ठीक से सहला भी नहीं पा रही है। पहले तो विधानसभा चुनावों ने ऐसा परिणाम दिया कि उसके 'मिशन-2009' के अभियान में ही पलीता लग गया। इन नतीजों ने पी एम इन वेटिंग आडवाणी जी के दिल की धड़कन बढ़ा दी है क्योंकि आने वाला समय अच्छे संकेत नहीं दे रहा है। उस पर कोढ़ में खाज यह हुआ कि पार्टी के मुख्यालय से भाई लोगों ने 'गाढ़ी - कमाई' से ढाई करोड़ रकम साफ़ कर दी! अब इस हालत में पार्टी खुलेआम कुछ भी कहने से बच रही है ,यहाँ तक कि वह इसके विषय में पुलिस-रिपोर्ट करने से बच रही है । जानकारों का मानना है कि अगर रिपोर्ट की गयी तो कई अप्रिय सवाल भी पूछे जायेंगे, मसलन इतना पैसा कहाँ से आया,इसका कहीं लेखा-जोखा है कि नहीं,वगैरह-वगैरह।
अब जबकि लोकसभा चुनाव सर पर हैं ,पार्टी को कुछ सूझ नहीं रहा है कि ऐसे में क्या किया जाए और उसके लिएये मुसीबतें ख़ुद उसके ही लोगों द्वारा दी गयी हैं । आज के हालात में न तो उसके हाथ सत्ता लगी है और जो जमा-पूँजी थी वह भी चली गयी । कहाँ तो अडवाणी जी मनमोहन सिंह को सबसे कमज़ोर प्रधानमंत्री कहकर उनका मज़ाक उड़ा रहे थे और कहाँ तो आज वे ख़ुद ही मज़ाक बने हुए हैं। उधर मनमोहन हैं कि 'सिंह इज़ किंग ' की धुन बजाये जा रहे हैं। अभी भी बहुत से लोगों को भाजपा से सहानुभूति है और उनके लिए यही कहना है कि इस 'सहानुभूति'
को अभी बचाए रखें , बहुत ज़ल्द पार्टी को इसकी और ज़रूरत पड़ने वाली है!